गाँव और शहरी जीवन :-
आज सारे लोग शहर की तरफ उसकी चका चोंध देखकर उसके पीछे पागल है । असली जीवन तो गाँव में ही है ।शहर में तो सब अपने गर के दरवाजे भी बांध करके रहते है ,जहाँ पर गाँव में हमेसा सबके दरवाजे सबके लिए खुले रहते है ।गाँव में अतिथि आयते हे तो उनका आदर सत्कार किया जाता है उसकी जगह शहर में अतिथिओ को रहने तक की व्यवस्था अपने गर में नहीं हो, सकती खुद चार बाय चार की खोली में रहते है वह अतिथि को रहने की व्यवस्था कैसे करेंगे , गाँव में तो बड़े बड़े गर होते हे जहा सब आराम से रह सकते है ।
गांव में और शहर के रहेन शहन भी अलग होते हे , गांव में लोग शुबह जल्दी उठाकर अपना कार्य करते हे वही शहर में लोग सुबह ८ बजे उठते हे , गांव में सब लोग एक दूसरे को जानते हे जब शहर में अपने आसपास कौन रहता हे यह भी नहीं जानते, गांव में कोई भी त्यौहार हो तो पूरा गांव साथ मिलकर मनाता हे, जबकि सहर में तो अकेले ही त्यौहार मानते हे , गाँव में झगड़ा हो तो पूरा गांव इक्क्ठा हो जाता है,
वही शहर में आसपास कुछ भी हो रहा हो लोग उसे अनदेखा करके अपने काम पे लग जाते हैं, यही सच्चाई है गांव और शहरी जीवन की.
आज सारे लोग शहर की तरफ उसकी चका चोंध देखकर उसके पीछे पागल है । असली जीवन तो गाँव में ही है ।शहर में तो सब अपने गर के दरवाजे भी बांध करके रहते है ,जहाँ पर गाँव में हमेसा सबके दरवाजे सबके लिए खुले रहते है ।गाँव में अतिथि आयते हे तो उनका आदर सत्कार किया जाता है उसकी जगह शहर में अतिथिओ को रहने तक की व्यवस्था अपने गर में नहीं हो, सकती खुद चार बाय चार की खोली में रहते है वह अतिथि को रहने की व्यवस्था कैसे करेंगे , गाँव में तो बड़े बड़े गर होते हे जहा सब आराम से रह सकते है ।
गांव में और शहर के रहेन शहन भी अलग होते हे , गांव में लोग शुबह जल्दी उठाकर अपना कार्य करते हे वही शहर में लोग सुबह ८ बजे उठते हे , गांव में सब लोग एक दूसरे को जानते हे जब शहर में अपने आसपास कौन रहता हे यह भी नहीं जानते, गांव में कोई भी त्यौहार हो तो पूरा गांव साथ मिलकर मनाता हे, जबकि सहर में तो अकेले ही त्यौहार मानते हे , गाँव में झगड़ा हो तो पूरा गांव इक्क्ठा हो जाता है,
वही शहर में आसपास कुछ भी हो रहा हो लोग उसे अनदेखा करके अपने काम पे लग जाते हैं, यही सच्चाई है गांव और शहरी जीवन की.